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पिथौरागढ़ का प्राचीन मंदिर जहां शिव ने की थी बैरागी रूप में तपस्या

पिथौरागढ़ के बिण में स्थित तपचूड़ा मंदिर को अब भव्य रूप दिया जा चुका

पिथौरागढ़। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यह प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों की तपोस्थली तो रही ही है, साथ ही यहां अनेकों प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं। राज्य के हर सिद्धपीठ और मंदिर से जुड़ी रोचक कहानियां हैं, जिन पर यहां के लोग आंख मूंदकर विश्वास करते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की बात की जाए, तो यहां ज्यादातर शिव मंदिर ही देखे जाते हैं, जो कई शताब्दियों से लेकर आज भी वैसे के वैसे ही स्वरूप में हैं। कुमाऊं मंडल का पिथौरागढ़ जिला आज भी देवी-देवताओं के यहां वास करने की कहानियों को बखूबी बयां करता है।
आज ऐसे ही एक पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध शिव मंदिर के बारे में हम बता रहे हैं, जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि माता सती ने जब अपने प्राणों की आहुति दी थी, उस समय शिव के बैरागी रूप ने इस जगह पर तपस्या की थी। जिसके बाद से ही यह तपोस्थली के रूप में जाना जाने लगा। पिथौरागढ़ के बिण में स्थित तपचूड़ा मंदिर को अब भव्य रूप दिया जा चुका है। इसकी बनावट भी यहां पहुंचे लोगों को आकर्षित करती है।
स्थानीय निवासी और पिथौरागढ़ जिले के जानकार टिकेंद्र महर ने जानकारी देते हुए बताया कि तपचूड़ा मंदिर पिथौरागढ़ मुख्यालय के लोगों का पवित्र धार्मिक स्थल है। भगवान शिव यहां जटेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं और आज भी तपस्या में लीन हैं। उन्होंने बताया कि शिवरात्रि के दिन यहीं से प्रसिद्ध सेरादेवल मंदिर के लिए डोला उठता है। देवता अवतरित होते हैं और उनका आशीर्वाद लेने हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।
तपचूड़ा मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण यहां मौजूद पत्थर से बनी मूर्तियों को देखकर लगाया जा सकता है, जहां प्राकृतिक शिवलिंग के दाएं और बाएं भगवान गणेश, हनुमान और विष्णु भगवान की मूर्तियां हैं। यहां हर शाम को विशेष आरती होती है, जिसमें स्थानीय लोग शामिल होते हैं।

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