
इससे 2 लाख लोगों को पेयजल मिलने की होगी उम्मीद
जलवायु परिवर्तन और जल स्रोतों के पुनर्जीवीकरण पर विस्तृत रूप से चर्चा की जा सके
देहरादून। देश दुनिया में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। जिसके चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं। देश के हिमालय क्षेत्र में मौजूद जल स्रोत सूख रहे हैं। जिसको लेकर भारत सरकार के नीति आयोग ने अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान कोसी, अल्मोड़ा के सहयोग से कार्यशाला का आयोजन किया। ताकि इस कार्यशाला के जरिए जलवायु परिवर्तन और जल स्रोतों के पुनर्जीवीकरण पर विस्तृत रूप से चर्चा की जा सके।
कार्यक्रम में शामिल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि भारतीय हिमालय क्षेत्र के जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के प्रयास को बल मिलेगा। बल्कि जलवायु परिवर्तित की चुनौतियां से निपटाने को लेकर नई-नई कार्य योजनाएं भी तैयार की जा सकेंगी।
सीएम ने कहा कि ऐसे में कार्यशाला के दौरान जो तमाम बिंदु सामने आएंगे वो न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि अन्य हिमालय राज्यों के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होंगे। साथ ही कहा कि पिंडर नदी और कोशी नदी से जोड़ देंगे, तो इससे करीब 2 लाख लोगों को पेयजल के साथ ही सिंचाई के साधन की मिल सकेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि नीति आयोग से इस बात पर पहले भी अनुरोध किया जा चुका है कि जिन नदियों में पहले सदाबहार जाल का प्रवाह होता था वो नदियां अब धीरे-धीरे बरसाती नदियों जैसी हो गई है। साथ ही कहा कि देश के अंदर नदियों को जोड़ने का जो अभियान चल रहा है उसको देखते हुए पिंडर नदी और कोशी नदी को जोड़ने के लिए नीति आयोग से अनुरोध किया गया है। ताकि नदियों में सदाबहार जल का प्रवाह होता रहे है।
5500 जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने पर है फोकस
देहरादून। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ये कार्यशाला काफी महत्वपूर्ण है जो भारत सरकार के नीति आयोग और जीबी पंत संस्थान की ओर आयोजित की गई है। जिसमें लोगों ने जलवायु परिवर्तन और हिमालयन क्षेत्र की तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए इस कार्यशाला में अपने-अपने विचार रखे। जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या और चुनौती बनी हुई है। क्योंकि प्रदेश के जल स्रोत सूखते जा रहे हैं, जिसको देखते हुए राज्य सरकार इन सभी जल स्रोतों के पुनर्जीवीकरण को लेकर सारा (स्प्रिंगशेड एंड रिवर रिजुवेनेशन एजेंसी) के जरिए प्रयास कर रही है। वर्तमान समय में 5,500 स्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया जा रहा है।